इलाहबाद विश्वविद्यालय की अध्यक्षा ऋचा सिंह ने किया पिंजरा तोड़ का समर्थन, युवतियों को दी हिम्मत पितृ सत्ता से लड़ने की. आज दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ़ आर्ट्स में पिंजरा तोड़ के सदस्यों को इलाहबाद विश्वविद्यालय की अध्यक्षा ऋचा सिंह ने सम्भोदित किया. आपको बता दें की पिंजरा तोड़ एक ऐसा समूह है जो लड़कियों व् औरतों के हितों के लिए काम करता है. इसकी पहुँच देश के बहुत सारे विश्वविद्यालयों में है.
महाविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राएं अपने आस पास के वातावरण में होने वाली घटनाओं को देखती और समझती हैं और आपस में पिंजरा तोड़ के नाम के नीचे समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करती हैं. आज ऋचा सिंह ने अपने सम्भोदन में यह बताया की किस तरह उन्होंने इलाहबाद विश्वविद्यालय में जीत हासिल की और पहली महिला अध्यक्ष बनी. उन्होंने बताया की सभी युवतियों का पूरा साथ रहा उनकी इस जीत में. न केवल युवतियां अपितु युवकों ने भी एक पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों को शक्ति देने में पूरी सहायता की. सभी ने मिल कर विरोधियों का मुहं तोड़ जवाब दिया.
इलाहबाद एक ऐसी जगह है जहाँ लड़कियों का राजनीती में आना बिलकुल सही नहीं समझा जाता और इस विश्वविद्यालय में बाहु बल और पैसे का खुल्ला प्रयोग होता है. ऋचा सिंह और उनके साथियो की ये चाहत थी की अपने विश्वविद्यालय का नाम ऊँचा ले कर जाए और पैसे से होने वाली राजनीति को खत्म करें जिसमें उन्हें बहुत अड़चन आई परन्तु इतिहास गवाह है की जब जब औरतों ने अपनी आवाज़ एक साथ उठायी है बुरी बुरी शक्तियां डर गयी हैं. ऋचा सिंह ने कहा की सशक्तिकरण तब ही होगा जब एक औरत उन जगहों पर पहुंचेगी जहाँ समाज केवल मर्दों को देखता है फिर चाहे वह नुक्कड़ वाली चाय की दुकान हो या राजनीति हो. अंत में इस नारे के साथ सभा की समाप्ति हुई “पितृ सत्ता की खोल दे पोल, पिंजरा तोड़ पिंजरा तोड़”
Very well said!! पितृसत्ता की खोल दे पोल ,पिंजरा तोड़ और डट के बोल!
बस अगर मर्द “गलत” जगह पर “गलत” तरीकों से जा रहे हैं,वहा कोई प्रतिस्पर्द्धा नही!