ग़रीब बच्चे:बाल मज़दूर या बाल कलाकार

जब हम बात करते हैं बाल श्रम की तो सीधे हम ये बोलते हैं की “बाल श्रम रोको” हम जब ये बोलते हैं तो हमारा इशारा सिर्फ और सिर्फ ग़रीब बच्चों के तरफ ही होता है जो या तो किसी ढाबे पे काम करते हैं तो कहीं पर मज़दूरी करते हैं और वो जो पैसे कामते हैं उनसे उनका घर चलता है घर मे उन्हे और उनके परिवार को एकसमय का भोजन मिलता है। वैसे तो हमेशा ही किसी न किसी NGO वाले हमेशा आवाज़ उठते हैं इन ग़रीब बच्चों के लिए और उन्हे छुड़ा भी लेते हैं बाल मज़दूरी से लेकिन कभी कोई उन अमीर बाल मजदूरों के लिए आवाज़ क्यूं नहीं उठाता जो टेलिविजन के प्रचार या फिल्मों मे काम कर के पैसे कामते हैं।सच बात तो यह है के अगर ग़रीब का बच्चे पेट भरने के लिए और अपना घर चलने के लिए मज़दूरी करें तो उसे बाल मज़दूरी कहते हैं और अगर अमीर के बच्चे पैसे कमाने के लिए टेलिविजन या फिल्मों मे काम करें तो वो बाल मज़दूरी बिलकूल नही होता लोग तो उसे बोलते हैं यह कोई बाल मज़दूरी थोड़ि है ये बच्चे तो अपनीप्रतिभा दिखा रहे हैं और यह बाल कलाकार हैं।लेकिन अगर देखा जाए तो यह बाल कलाकार भी एक प्रकार की बाल मज़दूरी ही करते हैं या यह कहें के इनके घर वाले इनसे करवाते हैं,इनके लिए कोई क्यूँ आवाज़ नहीं उठाता इन्हे कोई इतनी काम उम्र मे मेहनत करने से कोई क्यूँ नहीं बचाता।

मेरे हिस्से मे किताबें ना खिलौनें आये!
ख़्वाहिश-ए-रिज़्क ने छीना मेरा बचपन मुझ से!!

अगर अमीर बच्चों को जो टीवी से पैसे कमाते हैं हम बाल मजदूर की जगह बाल कलाकर कहते हैं। अगर देखना ही है वास्तविकता मे बाल कलाकार तो जा कर देखे कोई उन ग़रीब बाल मजदूरों को जो बहुत ही ज्यादा अच्छी कलाकारी दिखते हैं ढाबाओं पर और वैल्डिंग की दुकानों पर। अगर इतनी कम उम्र मे खिलौनो के बदले पुरा का पुरा घर चलाने की ज़िम्मेदारी हो ग़रीब बच्चों पर और वो उसे सही तरीक़े से अंजाम मे दे रहे हों तो उनसे अच्छा और बड़ा कलाकार तो टीवी क्या पूरी दुनिया मे नहीं मिलेगा।

एक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई
पेट की भूँख मिटाने के लिये कुछ पैसे जौड़ती हुई
एक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

रुखे बाल चेहरे पर भोलापन आँखोँ मेँ रोटी के लिये तड़प
अपने जीवन को कोसती हुई
इक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

ना खिलौनोँ की तमन्ना थी उसे ना ही गुड्डे गुड़ियोँ का शौक
वो तो जिन्दा थी बस रोटी के लिये अपने बचपन को बेचती हुई
इक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

उसके भी थे कुछ सपने
पढ़ लिखकर वो भी बनना चाहती थी ऑफीसर
लेकिन साथ ना दिया किसी ने वो मिली मुझे भूँख के लिये सपनोँ को छोड़ती हुई
एक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

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