हाल ही में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के इतिहास में चुनी गयी पहली महिला अध्यक्ष रिचा सिंह काफी सुर्खियों में रही हैं और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक चर्चित चेहरा हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की पढाई कर रही रिचा ने हाल ही में विवादित सांसद योगी आदित्यानाथ को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आने से रोकने के साथ ही राष्ट्रीय छात्र राजनीति में उभर कर सामने आयी हैं।
आकांक्षा सहगल (आपका टाइम्स): गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ को इलाहबाद विश्वविद्यालय में आने से रोकने की क्या वजह रही?
रिचा सिंह: योगी आदित्यनाथ एक विवादित चेहरा हैं, उनके ऊपर जातिवाद व् क्षेत्रवाद की राजनीती करने के आरोप हैं, उनके आपत्तिजनक बयानों से जनता में नाराज़गी है । इलाहबाद विश्वविद्यालय एक शिक्षा का संस्थान है, यहाँ वैज्ञानिक, इतिहासकार, लेखक, कवि इत्यादि बुद्धिजीवों का छात्र खुल्ले दिल से स्वागत करते हैं परन्तु योगिनाथ जी का आना एक पार्टी या व्यक्ति विशेष का समर्थन कर रहा था जिस से न केवल मैं पर अधिकतर छात्र असंतुष्ट थे इसलिए उनका विरोध करना ज़रूरी हो गया था । हर धर्म के छात्रों की भावनाओं का सम्मान करना मेरा कर्त्तव्य है और उसी को ध्यान में रखते हुए हमने ये कदम उठाया।
आकांक्षा सहगल: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(ABVP) का आरोप है की आपको जिस मीटिंग में फैसला लेने के लिए बुलाया गया था उसमें आप आई नहीं और बाद में कुलपति के साथ जब मीटिंग हुई तब आपने उनके निर्णय का विरोध किया?
रिचा सिंह: विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष मैं हूँ और एक औपचारिक मीटिंग बुलाने का हक़ मुझे है, मैं माननीय राष्ट्रपति जी को बुलाने के लिए अपनी और से अथक प्रयास कर रही थी और इस बात की भनक भी नहीं थी की ऐसा निर्णय छात्रसंघ के अन्य सदस्यों द्वारा लिया जा रहा है या लिया जा चूका है। मुझे न किसी मीटिंग के बारे में सूचित किया गया न ही इस बात को मेरे सामने रखा गया। ये मेरा ही नहीं बल्कि इतने बड़े विश्वविद्यालय की अध्यक्ष पद की गरिमा का अपमान करना है, छात्रों ने मुझे चुन कर विश्वविद्यालय के लिए निर्णय लेने का हक़ दिया है। यह छात्रों का भी अपमान है।
आकांक्षा सहगल: क्या योगी आदित्यनाथ को सफलता पूर्वक रोक देने के बाद अब आपको किसी तरह की कोई अड़चन आ रही है ?
रिचा सिंह: यहाँ सरेआम ABVP द्वारा धमकियाँ दी जा रही हैं। न केवल मैं बल्कि होस्टल में रहने वाली छात्राएं भी असुरक्षित मेहसुस कर रही हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे विस्वविद्यालय प्रशासन भी मिला हुआ है। भूख हड़ताल पर बैठी छात्राओं के साथ बदतमीज़ी की गयी, गाली गल्लौज के साथ ही जान से हाथ धो बैठने की धमकियाँ भी दी गयी वो प्रशासन के नाक के नीचे। पर प्रशासन फिर भी चुप है क्या यही महिला सुरक्षा की बात करते हैं ये लोग? मुझे नहीं लगता ये सब देखने के बात मेरे बाद कोई लड़की फिर यहाँ खड़े होने का साहस करेगी।
आकांक्षा सहगल: छात्र राजनीति में आपका आना कैसे हुआ और आपके परिवार का क्या कहना था आपके इस कदम के ऊपर?पूर्वांचल में राजनीति में एक लड़की का सामने आना अपने आप में एक मिसाल है!
रिचा सिंह: मैं पी.एच.डी. कर रही हूँ और काफी वर्षों से यहाँ ही पढ़ रही हूँ इस विस्वविद्यालय ने मुझे बहुत कुछ दिया है, पढ़ाई के के साथ साथ अन्य गतिविधियों में भाग लेती आई हूँ। 2012 में हमने एक फ्रेंड्स यूनियन की शरुवात की थी जिसका मकसद छात्रों के लिए काम करना था, छात्रों के सुझाव और समस्याएं विश्वविद्यालय प्रशासन तक पहुंचाते आये हैं और विश्वविद्यालय के लिए काफी पहले से काम करते हुए आये हैं जिस से जान पहचान बन गयी और आगे चुनाव लड़ने की प्रेरणा भी मिल गयी। काफी समय से चलती आ रही समस्याओं को यूनियन के अंदर रहकर ही सुलझाया जा सकता था।शरुवात में माता पिता बिलकुल साथ नहीं थे और चुनाव लड़ने से मना करते रहे पर कुछ करने की और बदलाव लाने की मेरी जिद्द देख कर अब वो मुझे सपोर्ट करते हैं और हाँ नहीं करते तो मना भी नहीं करते। मैंने यह साफ़ किया हुआ था की मैं किसी पार्टी दफ्तर में बैठ कर छात्र हितों की बातें नहीं करूंगी इसलिए निर्दलीय लड़ने का फैसला लिया और अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि छात्रों के लिए काम करने की ठानी है। मेरे दोस्तों अथवा सहपाठियों का काफी समर्थन मिला और जो चुनाव 25 लाख में लड़ा जाता है उसे हमने बाहुबल और पैसे के बिना जीत कर दिखाया।
आकांक्षा सहगल: छात्र राजनीति से निकल कर देश की सक्रिय राजनीति में आने का आपका कोई प्लान?
रिचा सिंह: फिलहाल नहीं! हलाकि अपने विश्वविद्यालय के सुधार के लिए मुझे सभी पार्टी के छात्र संघटन का समर्थन चाहिएँ परन्तु किसी एक पार्टी विशेष की तरफ जाने का कोई इरादा नहीं है।
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