संघर्ष कर रहे अध्यापकों के नाम छात्रों का एक खुला पत्र

अभी अभी नंदिता मैडम का एक खुला पत्र पढ़ा जिसमें उन्होंने छात्रों को सम्बोधित करते हुए उनकी इस लड़ाई का महत्व बताया था। इसमें कोई शक नहीं की हम सब अपनी परीक्षा के अंकों का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। हम अंकों का इंतज़ार सिर्फ इसीलिए कर रहे हैं क्यूंकि हमने भी सपने देखे हैं और हम इन्हीं अंकों को समेट कर आगे की पढ़ाई कर अपने सपनों को पूरा होते हुए देखना चाहते हैं। हम में से काफी तो अपने अपने अध्यापकों के पदचिह्नों पर चल कर डॉक्ट्रेट की उपाधि पाना चाहते हैं व् शिक्षा के क्षेत्र में चरम सीमा तक पहुंचना चाहते हैं।

हम तीन साल इस विश्वविद्यालय में गुज़ार चुके हैं और यह बात बिलकुल सच है की एक शिक्षक ही छात्र की सबसे बड़ी प्रेरणा होता है। हमने ऐसे शिक्षक भी देखे हैं जो अपने विषय में बिलकुल भी निपुण नहीं हैं और न ही काम करना चाहते हैं ,ऐसा प्रतीत होता है मानो भ्रष्टाचार के चलते ही या किसी “गॉड फादर” की मदद से उनका यहाँ तक आना संभव हुआ हो परन्तु हमने वो शिक्षक ज्यादा देखे हैं जो सुबह नौ बजे की कक्षा में विद्यार्थियों से पहले आकर या तो आगे आने वाले लेक्चर की तैयारी करते हैं या LABORATORY में आगे होने वाले EXPERIMENT के लिए यह सुनिश्चित करते हैं की हमें किसी चीज़ की कमी न रहे। वह अध्यापक भी हैं जो देर शाम तक बैठ कर विषय से सम्भंदित समस्याओं का समाधान करते हैं कुछ तो ऐसे भी हैं जो विद्यार्थियों के साथ मिलकर विषय के सेमिनार्स अटेंड करते हैं व् उनके साथ मिलकर नए चीज़ों की खोज के लिए आतुर रहते हैं।

हमें इस बात का ज़रा सा भी अंदाजा नहीं था की हमारे इन प्रेरणा स्त्रोतों को किन किन मुश्किलों से गुज़ारना पढता है।  अपने सबसे प्रिय अध्यापक से हमने जब यह पुछा की उनको क्या ज़रूरत थी काली पट्टी बाँध कर जाने की या थाली करची ले कर जाने की तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा की हमारे कुछ साथी दस से अधिक वर्षों से पढ़ा रहे हैं और अभी भी उन्हें वह अवसर नहीं प्राप्त हो रहा जिसे पाने के लिए वह आये ही थे. बस इसी से ही हमने ये भाप लिया की हो सकता है हमारी दशा इस से भी ज्यादा खराब हो जाए।  AD-HOC के नाम की ऐसी स्टम्प लगे जो ज़िन्दगी को आगे ले जाने की बजाये पीछे पहुंचा  दे बस इसी से यह समझ लिया की पढ़ाई के साथ साथ इस सिस्टम से लड़ना कितना ज़रूरी है।  अपने बल पर पढ़ना है तो अपने बल पर लड़ना भी है।

यह अंक हमारे बड़े सपनों को पूरा करने में इतने मायने नहीं रखते जितना की हमारे लिए  हमारे अध्यापक का साथ व् उनकी  ख़ुशी मायने रखती है। और अब यह भी समझ आ गया  है की यह लड़ाई भविष्य में लड़ने से अच्छा है की अभी ही लड़कर हर उस नीति को खत्म करें जो शिक्षा के हित में नहीं फिर चाहे वह  सरकार की हो या UGC की।

“गुरु गोबिन्द दोउ खडे काके लागूँ पाँय
बलिहारी गुरु आपने गोबिन्द दियो बताय”

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