अमुवि विवाद: उदारवाद के ढोंग और इस्लाम के ठेकेदारी से परे भी तर्क हैं; नशरा बन गइ निशाना पर असल गूनाहगार कहीं छुट गया

पूंजीवाद की सबसे बड़ी जीत द्विपक्षीय लड़ाईयां कराना है. पूंजीवाद के गढ़ को ही देख लीजिए वंहा चुनावी लड़ाई कैसी होती है, या तो आप रिपब्लिकन के साथ हैं, न तो फिर डेमोक्रेक्ट्स के संग धक्के खाइए. और फिर दोनों विश्वयुद्ध का स्मरण कर लीजिये, या तो आप एक्सिस पॉवर के साथ रहिये या फिर अलाइड फोर्सेस के संग नृत्य कीजिये, अलबत्ता एक और पथ है, मौन का पथ. पर अगर आपको भाग्य लेना है तो तीसरा रास्ता नही है.

बहरहाल; ये सब लेख का मुख्य विषय नही है, बल्कि अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय मे जो हालिया का परकरण हुआ है उसको समेटना है. असल मे इस लेख मे मुस्लिम समुदाय के उतेजित लोगो से वार्तालाप करना है और संग-संग उदारवाद/मानववाद/नास्तिकता इत्यादि के ढोंग रखने वाले लोगो को तार्किक तमाचा देना है.

परकरण कुछ यूँ है, अमुवि के तीन पूर्व एवंम वर्त्तमान छात्र-छात्रा दिल्ली के किसी बार मै जाते है; और वंहा कुछेक मित्र भी आते हैं. उनमे से एक: भोला इन सब का फोटो शराब के साथ फेसबुक पर अपलोड कर के इन तीनो को टैग करता है. पर बात यंही तक नही रही बल्कि उसपे कैप्शन बहुत ही आहत भरी है, जिसको लिखना उचित नही है. और फिर ये तीनो फहद ज़ुबेरी, उमर गाजी और नशरा अहमद उस पोस्ट को लाइक-लव करते हैं. पर सारे मीडिया हाउसेस खबर को अलग ही दृष्टि से दिखातें है, जैसे इंडियन एक्सप्रेस का हेडिंग “AMU student gets showcause notice for ‘drinking alcohol at iftaar’.” अथार्त “ इफ्तार में शराब पिने से अमुवि के छात्रा को मिला कारण बताओ नोटिस”.

और वंही अपने आप की मुसलमानों के सामाज के रिफार्म करने का ढोंग करने वाले “न्यू ऐज इस्लाम पोर्टल” का भी वही राग है. वंही उदारता के ढोंग का बेहतरीन नमूना “न्यूज़ लौंड्री” नामी पोर्टल पर मिल जाएगा. जंहा एक तरफ अंग्रेजी मे “तुफैल अहमद” के लेख “How AMU breeds counter-modernism and religious orthodoxy” छपा है, वंही दुसरे तरफ “रोहिण कुमार” की लछेदार लेख “कट्टरपंथी छात्र और छात्र नेताओं के आगे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने टेके घुटने”. रोहिण कुमार पुरे लेख में मामला के अभिव्यक्ति के आजादी से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और किसी न किसी तरह इसलोमोफोबो को बचाव की कोशिश की झलक भी है.

वंही रोहिण कुमार के लेख के अनुसार: “मंगलवार शाम जेएनयू के एक छात्र नेता जो वाम संगठन के सक्रिय सदस्य भी हैं, उनसे पूछा, “आप लोग क्यों नहीं घटना पर निंदा प्रस्ताव ला रहे हैं? संगठन का क्या स्टैंड है? आप लोगों को तो जैसे सांप ही सूंघ गया है. क्या आप लोगों को यह छोटा मामला लगता है, जिसपर प्रतिक्रिया देने की जरूरत महसूस नहीं होती?

उन्होंने कहा, “कठमुल्लों के बारे में क्या ही कहा जाए. वहां की यूनियन है ही इस तरह की. हमारा पक्ष बस इतना है कि कोई भी कुछ भी खाए-पीए, फेसबुक पर फोटो डाले, नारे लगाए यह उसकी निजी पसंद है.” उन्होंने ज्ञान दिया लेकिन सार्वजनिक विरोध या निंदा करने की बात को टाल गए. आखिर सार्वजनिक तौर पर ऐसी जड़ताओं के खिलाफ बोलने में किस बात का डर है. सवाल यह भी है क्या बहुसंख्यक उग्रता के बरक्स अल्पसंख्यक उग्रता को नजरअंदाज किया जा सकता है?” इससे  तथाकथित सेकुलरिज्म के अलमबरदार लोगो की भी पोल खुलती नज़र आ रही है.

मेरा जो उदारवादी गुट का परिभाषा है उसमे सब तथाकथित सम्मलित हैं, चाहे वाम का धडा हो, या प्रगति का चोला पहना हो और नास्तिकता का नष्टवाला विचार रखे.

उस कैप्शन का कुछ अहम अंश बखान करना बहुत ज़रूरी है. जैसे कैप्शन में लिखा है “Iftari with musical staralvarts of Aligarh Muslim University. By Allah’s grace made 3 lapsed Sunni Muslims have Madira tonight.” और आखिर में लिखा है “(Uploaded by Tarek Fateh Android)”.

पर समाचारों में सिर्फ शराब-खाने पीने की आजादी की बात हो रही है. इस अंश के साथ जो धर्म के मजाक करने वाले शब्दों का कोई उल्लेख नही है, बल्कि सिर्फ संघ के मुस्लिम संस्थानों पर सुन्योजित हमले के मशीनरी के तरह काम कर रहे हैं, ये पूरा महागठबंधन जिसे में उदारवादी ढोंगी कहता हूँ.

यंहा पर इटालिक शब्दों को गौर करने की ज़रूरत है, कैसे मुस्लमान नवजवानों को उकसाने की कोशिश हुई है.

इस परकरण के कुछ ही लम्हे बाद सारे लिबरल फेसबुक ग्रुप में मुसलमानों को गालियाँ पड़ने लगी. बाकि बहुत सारे खुलेआम इस्लाम-अमुवि को गालियाँ और न जाने क्या-क्या कहने लगे. पर मेरी नज़र “राजीव त्यागी” नामी व्यक्ति पर ठहर सी गई. एक तरफ तो ये शख्स तारेक फ़तेह और भोले को इस्लामोफोब वैगरह कह रहा है, और आगे कहता है कि मेरे तीनो दोस्त फहद,उमर और नशरा गलत संगत में चले गए हैं. पर दुसरे तरफ Fir करने वाले को जेहादी, कुंठित और खुदा जाने क्या-क्या कहने लगता है.

अब आती है लेख के पहले अंश के प्रासंगिकता की बारी, इस पुरे परकरण मे दो ध्रूव बन गए हैं. तीसरा अथार्त वास्तविकता और तर्क के लिए कोई जगह ही न रही, दोनों गुट तर्क पर तो बात करते मिल जाएंगे अलबत्ता पार्शियल तर्क जो उनको कम्फर्टेबल हो.

पर वंही विश्वविद्यालय के एक छात्र शर्जील उस्मानी लिखता हैं, “फ़हद और ओमर का माफ़ीनामा केवल एफ़ाइआर के डर से है. वरना इनको धर्म और धार्मिक आस्था पर मज़ाक बनाने में मज़ा आता है. महीनों से ये यही सब करते आ रहे हैं. भोले की पोस्ट के इलावा भी पच्चिसियों ऐसी पोस्ट इनके वाल पर मिल जाएंगी जहाँ ये न सिर्फ इस्लाम, बल्कि सनातन और इसाई धर्म का भी मज़ाक बनाते रहे हैं. इनकी मासूमियत केवल एफ़ाइआर के लिए है. ओमर के लिए तो भोले ही नबी हैं, यह एक जगह वह खुद लिखते हैं.

रही बात नशरा की तो उसका सिर्फ इतना ही कुसूर था की वो फहद और ओमर की दोस्त है. धार्मिक मसले पर आजतक कम से कम मैंने तो कोई टिपण्णी नशरा की ओर से नहीं देखी. उसको पहले ही दिन अपने आप को उस पोस्ट से अलग करके, उसको रिपोर्ट करना था. लेकिन यह नहीं हुआ. नशरा का माफ़ीनामा यकीन करने लायक था. लेकिन फहद और ओमर ने अपना माफीनामा निकाल कर नशरा की माफ़ी का मज़ाक बना दिया. कैसे दोस्त हैं ये?

यह सब कहने के बाद, एक बात आप अच्छी तरह समझ लें. इस तरह यूँ भद्दी गाली देने का हक़ आपको भी नहीं है. एक जगह किसी पोस्ट के कमेन्ट में नशरा को किसी ने गाली दी तो मैंने मना करने की कोशिश की. सामने से सवाल आया कि ‘क्या तुम नशरा के क्लाइंट हो’. एक गिरे हुए इंसान ने जो खुद को अव्वल दर्जे का मुसलमान बताता है, लिख दिया की ‘चार लड़के, एक लड़की – गैंगबैंग’. कोई बोलता है की गांजा पीती है, आँख काली हो गई, कोई फटे हुए कंडोम की औलाद बोल देता है. यह सब इस्लाम के नाम पर? तौबा करो बेहूदो.

कल इसी को रोकने के लिए पोस्ट लिखे थें, तो बैलेंसवादी और अथीस्ट घोषित हो गए. बड़े बड़े लोगों ने कमेन्ट किया लेकिन किसी ने भी यह नहीं किया की अपने वाल पर से उन गालियों को हटा देता.

ओमर और फहद की बात जहाँ तक है, ये दोनों कम से कम पिछले डेढ़ साल से ये सब लिख बोल रहे हैं. एक बात इन्हीं के समर्थक नबील फीरोज़ को लिंच करने की धमकी पब्लिक में दे रहे थे. उस पोस्ट में लिखा था ‘लिंच दिस मुल्लाह’. उस वक़्त भी ये दोनों टैग थे, इन्होने कुछ नहीं बोला था. आज दोनों का मैसेज आया था. विडियो भेजी थी की अपनी वाल पर डाल दो. लेकिन उसका कोई मतलब नहीं है, ये झूठे हैं, ऐसे ही रहेंगे.

इन सब में आप एक ज़रूरी बात भूल रहे हैं. भोले विश्वकर्मा पर ध्यान केन्द्रित कीजिए. बहुत बड़ा हिन्दुत्ववादी इस्लामोफोब है. सैंकड़ो पोस्ट ऐसे लिख चुका है और अब भी मज़े ले रहा है. उसपर केस मज़बूत कीजिए.

बाकि, बैलेंसवादी कहिए या अथीस्ट, घंटा नहीं फ़र्क पड़ेगा. वस्सलाम.”

पर इन सब में नशरा ही पिस रही है और वो उतना जिम्मेवार भी नही है, पर विमेंस कॉलेज के स्टूडेंट्स यूनियन एवं अन्य महिला नेत्रियों की चुप्पी एक अजीब सी वाईब छोड़ रही है.

और अंत में यही कह सकता हूँ कि पूंजीवाद जीत गई हैं, क्योंकि आप या तो उदारवाद के ढोंगी बन जाओ या फिर इस्लाम के ठेकेदार बन जाओ तो ही बढ़िया; इसी तरह इस्लाम के ठेकेदारों ने नशरा को उदारवाद के ढोंगीयों के गिरोह मे ढकेला है. पर आगे क्या होगा मुझे न पता पर मेरा आंकलन है, अगर अमुवि के मुस्लिम समुदाय नशरा के साथ डायलाग न करेगी तो: या तो नशरा भी भोला को भगवान मानेगी या फिर आत्मदाह भी कर सकती है. अगर उसने खुद को नुक्सान पहुँचाया तो उसके कातिल मुस्लिम सामाज होगी.

लेखक: इमरान अहमद (“ये ब्लॉगर एवंम लघु कहानियो के लेखक हैं.”)

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं।

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