तृप्ति देसाई के नाम, “कमज़ोर” छात्रा का एक खुला पत्र.

तृप्ति जी

आज कल हर जगह आपका नाम बहुत सुनने में आ रहा है- किसी ने बोला की यह औरत सबको बिगाड़ कर रख देगी तो किसी ने बोला की यह वाकई में महिलाओं के लिए लड़ती है, किसी ने बोला कि यह किसी राजनैतिक पार्टी की कार्यकर्ता होगी तो किसी ने बोला कि यह शराब के नशे में धुत रहने वाली औरत है जो जवानी के मज़े लेना चाहती है।

जीवन के इस पड़ाव पर आकर अगर मैंने अपने आसपास औरत को कामयाब होते देखा है तो उसी औरत को ज़लील होते भी देखा है, औरत को सर उठा कर जीते देखा है तो उसी औरत को सड़क के किनारे बिकते छोले भठूरे वाले तक भरी दोपहर में अकेले जाने से डरते हुए भी देखा है। मुझे किसी धर्म या मज़हब से मतलब हो या न हो, किसी आरती या आज़ान से मतलब हो या ना हो पर मुझे अपने खुद से मतलब ज़रूर है, अपने औरत होने से मतलब ज़रूर है! अपनी अभिव्यक्ति, अपनी आज़ादी, अपनी कामयाबी से मतलब ज़रूर है।

कोई माने या न माने बचपन से ही हम औरतों को अपनी आवाज़ को दबाये रखना सीखा दिया जाता है, माँ बाप बेशक कुछ न कहें पर यह समाज बहुत कुछ कह देता है। पहले पिता फिर पति यही एक औरत की ज़िन्दगी समझी जाती है। कालेज कि कैंटीन में भी लड़की बिना सहेली के शायद ही जाती है कैंटीन तो फिर भी दूर कि बात है पानी पीने जाना हो तो भी लड़कियां झुण्ड में चलती हैं, झुण्ड में चलने वाली लड़कियों में से एक लड़की मैं भी हूँ और इसी लिए अपने आप को कमज़ोर कहती हूँ। न जाने इसका कारण क्या है,हम अपने आप को कमज़ोर समझती हैं या हमारी भलाई के लिए हमको कमज़ोर बन कर रहना सिखाया जाता है.

इस विचारधारा को तोड़ते हुए आप उन सशक्त औरतों में से एक हैं जो हम नवयुवतियों को प्रेरित करती हैं, तृप्ति जी आप आज के युग में एक मिसाल बन कर सामने आई हैं, कोई माने या ना माने हर औरत का दम घुटता है इस पुरुष प्रधान समाज में ओर ऐसी परम्पराओं को देख कर। आप हम सबकी आवाज़ बन कर सामने आई हैं। हमें पता है आपकी यह लड़ाई बिलकुल आसान नहीं है, किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है पर आपकी इस लड़ाई ने यह तो स्पष्ट कर दिया है की अगर आज किसी एक त्रुपति देसाई को कुछ होगा तो सौ त्रुपति देसाई और खड़ी होंगी, हर उस चीज़ के खिलाफ जो महिला को नीचे गिराती है। हमें अपना हक़ कोई दे या न दे हम उसे ले कर रहेंगे! अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जी कर रहेंगे!


एक औरत
आकांक्षा

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