मेरी माँ जैसे ठंडा साया

जिंदगी की तपती धूप मेँ एक ठंडा साया पाया है मैने
जब खोली अाँख अपनी माँ को मुस्कुराता हुआ पाया है मैने,
जब भी उस का नाम लिया उसका बेशुमार प्यार पाया है मैने
जब भी कोई दर्द महसूस हुआ ,जब भी कोई मुश्किल आई,
अपने पहलो मेँ अपनी माँ को पाया है मैने

आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी पर सवाल उठा की क्या वह एक लायक बेटे है ? क्या वह अपनी जीत मेँ अपनी माता को शामिल नहीँ करते? उन्होने तो अपने शपथ ग्रहण समारोह मेँ भी अपनी माता को, उस इंसान को बुलाने की तकलीफ नहीँ की जिसने उन्हेँ पैदा किया और पाल पोस कर इस काबिल बनाया कि वह आज देश के प्रधानमंत्री के रुप मेँ हमारे सामने खड़े हैँ|
इस मुद्दे पर थोड़ा सा विचार किया जाए तो जैसे सवालो का एक बड़ा पहाड़ सामने बनता दिखाई पड़ता है की देखा जाए तो मोदी जी तो फिर भी एक वरिष्ठ नेता हैँ परंतु क्या आज का युवा अपनी माता को वह प्यार, वह आदर व सम्मान प्रदान करता है जिसकी वह हकदार है? एेसे कितने लोग हैं जो दिन में थोड़ा समय निकालकर कुछ देर बैठकर अपनी माता से वार्तालाप करने व उसकी दुविधाओं को समझने कोशिश करते हैँ? हम जैसे -जैसे बड़े होने लगते हैँ वैसे-वैसे माता पिता की अहमियत हमारे जीवन मेँ कम होने लगती है, हम यह अक्सर भूल जाते हैँ जैसे साल-दर साल हम बड़े होते जाते हैँ वैसे ही पल-पल हमारे माँ बाप भी अपने वरिष्ठ जीवन की ओर बढ़ रहे हैँ|
भारत के संदर्भ में देखा जाए तो पिता तो फिर भी घर से बाहर काम पर जा कर व अपने मित्रोँ के साथ अपना समय किसी तरह गुज़ार लेते हैँ, परंतु भारतीय माताएँ ग्रहणी के रुप मेँ अपना पूरा जीवन अपने परिवार को ही समर्पित कर देती है| कहने के लिए जब कोई हमसे पूछता है कि हम जीवन मेँ किस से सबसे ज्यादा प्यार करते हैँ तो हम बहुत शान अपनी माता का नाम लेते हैँ परंतु क्या असल मेँ हम कभी अपनी माँ को वह सद्भावना व सत्कार प्रधान करते  हैं?माँ वह है जो हमारे लिए अपने जीवन की सभी खुशियाँ त्याग देती है,माँ वो है जो दर्द सह कर भी हमेँ नया जीवन देती है, हमारी छोटी छोटी गलतियों पर फटकारने के बजाय प्यार से समझा देती है,माँ वो है जिसकी ममता हमेँ प्यार करना सिखाती है| ऐसे मेँ हम युवाओं की जिम्मेदारी बनती है की हम उस पर संपूर्ण जग का प्यार न्योछावर कर दे, परंतु हम क्या करते हैँ उनकी छोटी सी से गलती पर उन पर चिल्लाते हैँ,अपने दोस्तोँ के बीच उनका मज़ाक बनाते हैँ,उनकी कही बातोँ को सुना -अनसुना कर उन्हे उस चार दिवारी मेँ अकेला छोड़ जाते हैँ,माँ वह है जो ढाल बनकर हमेँ दुनिया के सवालो से बचाती है और हम?हम वह है जो अपने कर्मो से उसे कलंकित करने का एक मौका नहीँ छोड़ते| बचपन से उसकी गोद मेँ उसके घूँघट की छांव मे पलकर बड़े हुए अपनी माँ को उसकी पसंद के कपड़े दिलाने में कतराते हैँ,उसी से सीखा उसी को सिखाते हैँ और वह गर्व से मुस्कुराकर प्यार से हमारे सर पर हाथ फेर देती हैँ|हमारी जीत तो हमारी ही है पर हमारी हार को अपना कर खुद को कोस कर रह जाती है वो,अपनी माँ की परछाई कहलाने वाले हम बच्चे अपनी आत्मा, अपनी माँ को ही किसी और के लिए छोड़ देते हैँ|हमारा फर्ज नहीँ हमारी अंतरात्मा है हमारी माँ| जिस पेड़ की छाया मे पले-बढ़े है उसी की देखभाल करने से क्यों कतराते हैँ, हम यह भी नहीँ सोचते कि जिस दिन यह पेड़ नहीँ रहेगा उस दिन वह ठंडा साया कहाँ से लाएंगे जिसने आज तक धूप की मार से बचा रखा था|

इसकी दुआ से हर मुसीबत लुट जाए ऐसा फरिश्ता पाया है मैने,
जब भी उसका नाम लिया उसका बेशुमार प्यार पाया है मैने|
मेरी हर फिकर को जाने वाली,
मेरे जज़्बातोँ को पहचानने वाली,
ऐसी हस्ती पाई है मैने,
मेरी जिंदगी सिर्फ मेरी माँ है
इसके लिए ही तो इस ज़िंदगी की शमा जला रखी है मैने|

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