समय-समय पर जब भी विश्वविद्यालयों में चुनाव का समय आता है , तभी विद्वान व ज्ञानी लोग छात्रों की राजनीती में प्रासंगिकता पर प्रश्न चिह्न लगा देते है|बार बार ये सवाल दोहराया जाता है की क्या छात्रों को राजनीती में भाग लेना चाहिए | भगत सिंह के लेख में उन्होंने खुलकर कहा है की छात्रों को राजनीती में भाग लेना चाहिए ,जब उन्हें 1928 में इस बात का ज्ञान था की छात्रों को भाग लेना चाहिए ,तो आज जबकि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो प्रबुद्ध और ज्ञानी वर्ग क्यों छात्रों को राजनीती से दूर रखना चाहते है जबकि भविष्य के निर्माता वही होंगे |
क्या छात्र केवल किताबो को पढ़कर अपनी सहभागिता दिखाएंगे ?
क्या राजनीती भी एक भविष्य या कैरियर नहीं है ?
क्या केवल बाकि विषयो में दक्षता हो और राजनीती का ज्ञान न हो?
क्या वे राजनीती को अपने आखिरी विकल्प के रूप में रखें ?

छात्रों को भी आवश्यकता है की राजनीती की शिक्षा भी हो और व्यावहारिक रूप में समझ भी सके |राष्ट्रिय नेतृत्व का दायित्व है की वे छात्रों मे, जिन्हे कल देश की बागडोर हर स्तर पर अपने हाथों मे लेनी है- नेतृत्व क्षमता पैदा करें, उन्हें उनके राष्ट्रिय कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक बनायें, उन्हें सांप्रदायिक व प्रथक्तावादी ताकतों के विरुद्ध एकजुट करें, उन्हें लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली से अवगत कराएँ ओर साथ ही राष्ट्रिय समस्याओं के समाधान मे उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो वे ना सिर्फ राष्ट्र के साथ विश्वासघात करेंगे, बल्कि यह देश की भावी पीढी के साथ भी घोर अन्याय होगा |राजनीति में अपराधी तत्वों के समावेश को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि हम विद्यार्थी जीवन से ही छात्रों को राजनीति की शिक्षा प्रदान करें । शिक्षकों का यह दायित्व बनता है कि वह छात्रों को वास्तविक राजनीतिक परिस्थितियों से अवगत कराएँ ताकि वे बड़े होकर सही तथा गलत की पहचान कर सकें ।
सभी विद्यार्थियों का यह कर्तव्य बनता है कि वह राष्ट्रहित को ही सर्वोपरि समझें ।राजनीती का प्रयोग किसी को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि सबके विकास के लिए करना चाहिए | भविष्य निर्माण के लिए छात्रों को राजनीति में रहना चाहिए ,विश्वविद्यालय में चुनाव व राजनीती भी होनी चाहिए परंतु इसके कारण उन्हें अपने विद्यार्थी जीवन से लगाव काम नहीं करना चाहिए |अपनी शिक्षा के महत्व को राजनीती के समक्ष देखकर आगे चलना ही उनकी जिम्मेदारी होगी|वे पढ़े आगे बढे , सहभागीदारी-साझेदारी का निर्माण करें | जहाँ जितनी आवश्यकता हो वहां अपना योगदान भी दे और अपने ज्ञान भंडार का भी विकास करे यही उनका सम्पूर्ण विकास का रास्ता होगा |
(प्रीती देवी,हिंदी पत्रकारिता ,दिल्ली विश्ववियालय)